अमेरिका के लिए एक सही फैसला
७ नवम्बर २०१२राष्ट्रपति बराक ओबामा किसी तरह अमेरिका को आर्थिक मंदी से बाहर निकालने और दूसरी मंदी रोकने में कामयाब रहे हैं. ओबामा को राष्ट्रपति बने अभी महीना भर भी नहीं हुआ था कि उन्होंने 787 अरब डॉलर के बेल आउट पैकेज पर दस्तखत कर दिए. इस के साथ देश में उस नीति का चलना जारी रहा जो पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने बैंकों के बेलआउट से शुरू की थी. आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है, आठ फीसदी की बेरोजगारी दर अभी भी बहुत ऊंची है लेकिन जानकार इस बात से सहमत है कि अगर समय पर उपाय नहीं किए गए होते तो स्थिति और ज्यादा खराब हो सकती थी.
ओबामा के दूसरे कार्यकाल में सबसे बड़ी चुनौती है 160 खरब डॉलर के कर्ज से जूझना. राष्ट्रपति ने कहा है कि वह टैक्स बढ़ा कर और खर्च घटा कर इसे सही करेंगे जो गणित के लिहाज से कर्ज संकट के दौर में उचित मालूम पड़ता है. यह रोमनी की सोच के बिल्कुल उलट है जिन्होंने रिपब्लिकन घोषणा पत्र में कहा था कि वह हर हाल में टैक्स बढ़ाने का विरोध करेंगे. राजनीतिक रूप से यह कहना गैरजिम्मेदारना और गणित की नजर में सच्चाई से दूर है. कोई भी शख्स अगर मोलभाव में सीधे सीधे समझौते की गुंजाइश खारिज कर दे तो उसे बचकाना ही कहा जाएगा.
जहां तक सामाजिक नीतियों की बात है ओबामा की कड़ी मेहनत की वजह से कानून में बदल पाए स्वास्थ्य सुधार अब आखिरकार लागू हो सकेंगे. ओबामा के दूसरे दौर का मतलब है कि लाखों अमेरिकियों को स्वास्थ्य बीमा मिल सकेगा और गंभीर रूप से बीमार होने का मतलब कंगाल होना नहीं होगा. रोमनी ने इन सुधारों को राष्ट्रपति बनने के पहले दिन ही खत्म करने का एलान किया था.
ओबामा अपने कुछ और कामों को सफलताओं में गिन सकते हैं. इनमें महिलाओं को पुरुषों के बराबर काम के लिए बराबर वेतन और समलैंगिकों को सेना में अपनी सेक्सुअलिटी जाहिर करने का अधिकार भी शामिल है. हम ओबामा के आप्रवासन कानूनों में सुधार को भी ज्यादा मानवीय होने की उम्मीद कर सकते हैं जो जल्दी ही सामने आने वाले हैं. ओबामा की नीतियां किसी भी रूप में आबादी के एक हिस्से को अलग थलग नहीं करेंगी जो देश की आर्थिक सफलता में टैक्स देकर योगदान देते हैं. रिपब्लिकन सुधारों के लागू होने पर ऐसा हो सकता था.
निश्चित रूप से राष्ट्रपति ने अंतरराष्ट्रीय मामलों में सब कुछ अच्छा नहीं किया. ईरान के विरोध प्रदर्शन या सीरिया की हिंसा में हाथ डालने से झिझक रहे ओबामा को उचित नहीं कहा जा सकता लेकिन उनकी आलोचना करने वालों को याद रखना चाहिए कि 2008 में अमेरिकी लोगों ने उनके वादे पर उन्हें वोट दिया था. ओबामा ने अमेरिका की एकध्रुवीय महाशक्ति की छवि से बाहर निकाल कर उसे सहयोगी ताकत में तब्दील कर दिया. लीबिया में अंतरराष्ट्रीय सैनिक कार्रवाई इसका सबसे अच्छा उदाररण है.
सबसे आखिर में लेकिन एक जरूरी बात यह भी है कि राष्ट्रपति ओबामा के शासन में अमेरिका थोड़ा बहुत जाना समझा लगता है. ओबामा ने शांत रह कर न्यायिक तरीके से पिछले चार साल सत्ता में गुजारे हैं. रिपब्लिकन हर तरह की नीतियों को उलट पलट करते रहने की आदत को ध्यान में रखें तो रोमनी के राष्ट्रपति होने पर क्या होता इसका अंदाजा कोई भी लगा सकता है. अमेरिका को इस वक्त एक स्थिर शख्स की जरूरत है और बराक ओबामा के रूप में उन्होंने उसे दोबारा चुन लिया है.
समीक्षाः क्रिस्टीना बैर्गेमान
संपादनः आभा मोंढे