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अब मंडरा रहा है साइबर शिकार का खतरा

२७ फ़रवरी २०१७

फोटोग्राफर, अवैध शिकारी और इको टूर ऑपरेटर्स अब वन्य जीव संरक्षकों के निशाने पर हैं. कनाडा के एक संरक्षक ने चेतावनी दी है कि जानवरों को ट्रैक करने के लिए लगाये जाने वाले टैग्स को हैक कर उन्हें नुकसान पहुंचाया जा सकता है.

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जंगली पशुओं की फोटोग्राफीतस्वीर: imago/Gallo Images

ओटावा की कार्लटन यूनिवर्सिटी के बायोलॉजी प्रोफसर स्टीवन कुक ने कहा है कि जानवरों और मछलियों का अध्ययन और संरक्षण करने के लिए वैज्ञानिकों द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले साधनों का इस्तेमाल, उन्हें नुकसान पहुंचाने के लिए किया जा रहा है. कुक कनाडा के पर्यावरण विज्ञान और बायोलॉजी के रिसर्च प्रमुख हैं और कंजर्वेशन बायोलॉजी पत्रिका में प्रकाशित एक लेख के प्रमुख लेखक हैं. इस रिसर्च पेपर में अमेरिकी प्रांत मिनीसोटा में मछली के शिकारियों के एक आवेदन की मिसाल दी गई है जिसमें नॉर्दर्न पाइक मछलियों के आवागमन के बारे में सूचना मांगी गई है. शिकारियों का कहना है कि चूंकि यह सर्वे सरकारी पैसे से हुआ है, इस जानकारी को सार्वजनिक किया जाना चाहिए.

कुक के रिसर्च पेपर का कहना है कि ऑस्ट्रेलिया में अधिकारियों ने टैग्स का इस्तेमाल शार्क मछलियों का पता करने और उन्हें मारने में किया है तो भारत में संरक्षित पशुओं की सूची में शामिल बंगाल टाइगर्स के शिकार के लिए जीपीएस कॉलर्स को हैक करने की कोशिश हुई है. कुक का कहना है कि यह नया चलन है और इस अप्रत्याशित समस्या के आयाम का पता करने के लिए कोई सूचना उपलब्ध नहीं है. लेकिन उन्होंने अपने लेख में बहुत सारे सुने सुनाये सबूत दिये हैं.

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सरिस्का में एक बाघ की ट्रैकिंगतस्वीर: Murali Krishnan

इस साल जून में संरक्षण के काम में लगे वैज्ञानिकों की ऑस्ट्रेलिया में बैठक हो रही है जहां इस समस्या और उसके समाधान के संभावित उपायों पर चर्चा होगी. इस बीच कुक डाटा की सुरक्षा के नियमों को सख्त बनाने और उन्हें इंक्रिप्ट करने के अलावा रिसर्च के बाहर वाली गतिविधियों में टेलिमेट्री का इस्तेमाल रोकने की मांग कर रहे हैं. कुक का कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक टैगिंग तकनीक से प्राकृतिक इतिहास, पर्यावरण, संरक्षण और संसाधनों के प्रबंधन को फायदा पहुंचा है, लेकिन यदि इसे बेरोकटोक छोड़ दिया जाता है तो इसका दुरुपयोग न सिर्फ जानवरों को नुकसान पहुंचायेगा बल्कि रिसर्च के लिए भी नुकसानदेह होगा.

इस रिसर्च का विचार कुक को तब आया जब बांफ नेशनल पार्क में एक छुट्टी के दौरान उन्हें पता चला कि फोटोग्राफरों ने टैग हुए जानवरों का पता करने के लिए टेलिमेट्री का इस्तेमाल किया. इसके बाद अधिकारियों ने वीएचएफ रेडियो रिसीवर पर रोक लगा दी है. कुक का कहना है कि टैग एक तरह की सनसनाहट छोड़ते हैं जिसका पता सस्ते रेडियो रिसीवर से भी किया जा सकता है, "इस तरह पार्क में उस जानवर का इंतजार करने के बदले आप उसके पीछे लग सकते हैं." इतना ही नहीं इस तरह एक जानवर शिकारियों को उनके ग्रुप तक पहुंचा सकता है. हालांकि कुक का मानना है कि वैज्ञानिकों को डाटा पर प्रतिबंध के लिए राजी करवाना मुश्किल होगा क्योंकि यह उसे खुले आदान प्रदान के खिलाफ है.

इतना ही नहीं कारोबारी हितों और संरक्षण के लक्ष्यों के बीच टकराव से भी समस्या पैदा हो सकती है. कुक ने कहा है कि उनके लेख के प्रकाशन के बाद उन्हें एक सफारी कंपनी के बारे में एक फोन आया, जो जानवरों को टैग करती रही थी, ताकि मेहमानों के लिए जरूरत पड़ने पर उन्हें खोजा जा सके. सफारी के दौरान जानवरों का घंटों इंतजार करने के बदले उनका पता कर उनके पास पहुंचा जा सके. बहुत से इको टूर ऑपरेटर अपने ग्राहकों को जंगली जानवरों के नहीं दिखने पर छूट देते हैं. कुक का कहना है कि उनके लिए जानवरों को हमेशा खोज सकने में वित्तीय फायदे हैं.

एमजे/ओएसजे (एएफपी)