अब भी सिसक रहा है न्यूयॉर्क
१५ नवम्बर २०१२बिजली, पानी के साथ ही खाना, कपड़ा और सफाई जैसी दूसरी बुनियादी जरूरतों के लिए बहुत संघर्ष है. फार रॉकअवे में सुबह 10 बजे से ही लोगों की लंबी कतार लग गई है. ये लोग लाइब्रेरी के बाहर दान में बंटने वाले ओवरकोट के इंतजार में हैं. सामने मौजूद चर्च की इमारत से लगती दो कतारें और खड़ी हैं. एक कतार गर्म खाने के इंतजार में हैं तो दूसरी साबुन, बैटरी, डायपर, झाड़ू और पानी की बोतल जैसी रोजमर्रा की चीजों के लिए. कार्यकर्ता खड़े हैं और लोगों को बता रहे हैं कि मदद हासिल करने के लिए क्या करना है.
रॉकअवे इलाका न्यूयॉर्क सिटी का हिस्सा है लेकिन 29 अक्टूबर को आए सैंडी तूफान के बाद किसी गरीब देश के पिछड़े इलाके जैसा दिखता है. सैंडी ने यहां के लाखों लोगों को बिजली से दूर कर दिया और बाढ़ के कारण बड़ी संख्या में लोगों के घर तबाह हो गए. न्यूयॉर्क के ज्यादातर हिस्सों में जिंदगी पटरी पर लौट आई है लेकिन रॉकअवे अभी भी बुरे हाल में है.
जॉन एफ केनेडी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे का आसपास के इलाकों का भी यही हाल है. जगह जगह लोग कतारों में खड़े हो कर चर्च, संघीय राहत एजेंसियों और दूसरे सामाजिक संस्थाओं से मदद लेने की कोशिश कर रहे हैं. बहुत सारे लोग तो अपने साथ खरीदारी करने वाली गाड़ी भी ले कर आए हैं वो धीरे धीरे जितना सामान मिलता है गाड़ियों में भरते हैं और फिर अपने घरों की ओर लौट जाते हैं. व्हीलचेयर में बैठे बैठे कतार में ओवरकोट पाने का इंतजार कर रही किओमारा एस्पिलाट पूछती हैं, "क्या आपके पास हीटर है, मुझे हीटर चाहिए." कियोमारा नौकरी से रिटायर हो चुकी हैं उनका एक पांव भी नहीं है. वो अपने अपार्टमेंट में अकेले रहती हैं जहां अभी तक न तो बिजली है, न घर गर्म हो रहा है और न ही फोन चल रहा है. वो शिकायत करती हैं, "कोई हमें कुछ नहीं बता रहा है."
एल सेल्वाडोर की 28 साल बिल्मा भी चार महीने के बच्चे के साथ कतार में हैं. उनके घर में भी बिजली नहीं है, "उन लोगों ने कहा है शायद कल तक, बहुत मुश्किल है." कुछ लोगों का कहना है कि उनके परिवार और दोस्तों ने शुरू में मदद की लेकिन ज्यादा वक्त गुजरने के साथ उनके लिए भी ऐसा कर पाना मुश्किल हो रहा है. सैंडी को आए 16 दिन बीत चुके हैं और कइयों को तो लगने लगा है कि अनंत काल हो चुका है.
बीच पर चैनल ड्राइव में लिंडा डी सेनियो अपने छोटे से घर में परेशान बैठी हैं. यह घर उन्होंने पिछले जून में ही खरीदा था. इसके फर्श से अभी भी पानी रिस रहा है. पड़ोसियों की तरह ही उन्होंने अपना सारा सामान बगल के फुटपाथ पर सुखाने के लिए रखा दिया है, उधर ठंडी हवा बढ़ती जा रही है. लिंडा के पास कोई बीमा नहीं हैं. वो कहती हैं, "मुझे नहीं पता कि कहां जाऊं, मैं सो भी नहीं सकती." पास में ही सामाजिक संगठनों ने साफ मोजे और तौलिये बांटने का इंतजाम किया है. 35 साल की सेसिला को मुफ्त में नया ड्रेसिंग गाउन मिला तो वो थोड़ी खुश हुईं, "मुझे घर में बहुत ठंड लग रही है. मेरे मकान मालिक ने कहा है कि बॉयलर बदलना है लेकिन उसके पास पैसा नहीं है. उसे नहीं पता कि वो कब यह करा पाएगी." सेसिला ने बताया कि कपड़े धोने के लिए भी पानी गर्म करना पड़ रहा है और यह भी कहा, "अगर मैं हंसी नहीं तो रो पड़ूंगी."
उधर दूसरे सिरे पर जाइये तो खाली पड़े अपार्टमेंट नजर आते हैं. दरवाजे खुले पड़े हैं और दीवारों पर तीन फुट की ऊंचाई तक पानी के बहाव के दाग पड़े हैं. घर के अंदर कहीं बच्चों के कपड़े, खिलौने और जूते पड़े हैं तो कहीं रेत और मिट्टी. यहां रहने वाले वापस नहीं लौटे. बीच के पास बुलडोजर सड़कों पर जमी रेत को हटाने में जुटे हैं. यहां खड़ी गाड़ियां अब भी रेत से ढंकी हैं, थोड़ा आगे जाइए तो एक टूटी हुई बोट नजर आती है. चौराहों पर पुलिस खड़ी है क्योंकि ट्रैफिक लाइट नहीं जल रहीं, ज्यादातर दुकानें बंद हैं. कुछ इलाकों में बिजली के जेनरेटरों का शोर कानों को भारी तकलीफ दे रहा है.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)