अब भी नर्वस होते हैं रहमान
५ अक्टूबर २०१३अपने इंडिया टूर की शुरूआत में रहमानिश्क कार्यक्रम पेश करने के लिए कोलकाता आए ए आर रहमान ने डीडब्ल्यू के कुछ सवालों के जवाब दिए. पेश हैं उसके मुख्य अंशः
छोटी उम्र में ही स्कूल की पढ़ाई छोड़ने के बाद आप संगीतकार कैसे बने?
आर्थिक दिक्कतों की वजह से मुझे कम उम्र में ही स्कूल छोड़ कर पैसे कमाने की कोशिश करनी पड़ा. मैं अपनी मां की प्रेरणा और पिता के प्रोत्साहन से संगीतकार बना. हालांकि मैं उतना अच्छा नहीं था, लेकिन अब संगीत ने मुझे इज्जत, शोहरत, तमाम अवार्ड्स और पैसे दिलाए हैं. संगीत ने मुझे कई ऐसी चीजें दी हैं मैं जिनके लायक नहीं था.
आपने संगीत का स्कूल भी खोला है?
हां, और उसमें देश-विदेश के तमाम प्रशिक्षक हैं. कभी-कभी तो ईर्ष्या होती है कि मुझे शुरूआती दौर में ऐसी सुविधा क्यों नहीं मिली.
क्या अब युवा वर्ग भारतीय संगीत को पहले के मुकाबले ज्यादा सुन रहा है?
भारतीय संगीत का अपना अलग चार्म है. यह एक समुद्र की तरह है जहां से हम अपनी पसंद की चीजें चुन सकते हैं. हमें अपनी संस्कृति पर गर्व होना चाहिए और इसके सहारे लोगों की पसंद का संगीत तैयार करना चाहिए.
क्या अब भी किसी खास गायक के साथ काम करते वक्त नर्वस होते हैं?
हां, एस.पी.बालसुब्रण्यम, लता मंगेशकर, आशा भोसले या येसुदास जैसे गायकों के साथ काम करते वक्त कुछ नर्वसनेस आ ही जाती है. उनलोगों को भी यह महसूस होता है. जब तक गाने और संगीत की ट्यूनिंग फिट नहीं हो जाए, तनाव तो रहता ही है.
तकनीक में आए बदलावों से एक संगीतकार के तौर पर आपके कितनी सहायता मिलती है?
मुझे लगता है कि तकनीक व प्रतिभा का मिश्रण जरूरी है. भारतीय संगीत उद्योग को इसका काफी फायदा हो रहा है. नई तकनीकों के चलते तमाम तरह का संगीत श्रोताओं को आसानी से उपलब्ध है. साथ ही संगीतकारों के लिए संगीत रचने की प्रक्रिया भी आसान हो गई है. तकनीक अब सादगी की ओर बढ़ रही है. पहले तकनीक की सहायता से कुछ बेहतर करने के लिए जटिल प्रक्रिया अपनानी पड़ती थी. लेकिन अब तकनीक का इतेमाल बेहद आसान हो गया है.
देश के युवा संगीतकारों के बारे में आपकी क्या राय है ?
यहां प्रतिभाओं की कमी नहीं है. कुछ लोग बेहतर काम कर रहे हैं और उनके लिए अपार संभावनाएं हैं. जरूरत है उनको सही दिशा देने की. नई प्रतिभाओं का इस क्षेत्र में आना संगीत और फिल्मद्योग के भविष्य के लिए काफी अच्छा है. मैं नए संगीतकारों को सुनता हूं. लेकिन मुझे संगीत का विशुद्ध रूप पसंद है, रीमिक्स नहीं.
आजकल संगीत में भी फ्यूजन का दौर चल रहा है. आप क्या सोचते हैं ?
मेरी राय में जब तक सुनने में अच्छा लगे तब तक भारतीय और पाश्चात्य संगीत के तरीकों के मिश्रण में कुछ गलत नहीं है. मेरे लिए संगीत पूरब और पश्चिम नाम की दो अलग दुनिया के तरीकों का विलय है. इनको अलग-अलग श्रेणी में बांटना उचित नहीं है. हॉलीवुड और बॉलीवुड नई चीजें सीखने के दो बेहतर मंच हैं. मैंने दोनों से काफी कुछ सीखा है.
नाम-दाम और तमाम अवार्ड्स हासिल करने के बाद अब आगे क्या योजना है?
अब युवा संगीतकारों की प्रतिभा को निखारना मेरी सबसे पहली प्राथमिकता है. इस मकसद से ही केएम कालेज आफ म्युजिक एंड टेकनोलॉजी की स्थापना हुई है. हमें भविष्य की ओर देखना चाहिए.
खाली समय में क्या करते हैं?
कोई 12-13 साल पहले मैं दिन-रात काम करता था. लेकिन अब उसके मुकाबले कम काम करता हूं. बच्चों को भी समय देना जरूरी है. मैं अपने तीनों बच्चों के साथ खाली समय बिताना पसंद करता हूं.
इंटरव्यूः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः निखिल रंजन