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अच्छे संकेत नहीं भारत-पाक रिश्तों में आतंकी हमले

६ अगस्त २०१५

भारत और पाकिस्तान के बीच नई बातचीत से पहले आतंकी हमले हुए हैं. दोनों देशों के संबंध जिस तरह से सांप-सीढ़ी का खेल बन कर रह गए हैं, उसे देखते हुए इस वार्ता से किसी किस्म के नए अध्याय की शुरुआत की उम्मीद करना धोखा होगा.

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तस्वीर: Reuters

भारत-पाकिस्तान संबंधों की हालत यह है कि अगर दोनों देश बातचीत के लिए राजी हो जाएं और मेज पर बैठ कर बात कर लें, तो इसे ही एक किस्म की उपलब्धि माना जाता है, भले ही दोनों ने तथाकथित वार्ता के दौरान अपने पुराने रुख को ही दुहराया हो और अपनी सोच में किसी भी तरह के बदलाव का संकेत न दिया हो. अक्सर बातचीत से पहले सीमा पर गोलीबारी और आतंकी गतिविधियां बढ़ जाती हैं, इन नजरिये से देखें तो दोनों देशों के बीच इस महीने हो रही है बातचीत एक दूसरे के नए रुख को परखने का मौका हो सकती है.

अजित डोवाल और सरताज अजीज, दोनों ही अपने-अपने देश में सख्त नीति के हिमायती माने जाते हैं. ये सरताज अजीज ही हैं जिन्होंने बड़ी बेबाकी के साथ कहा था कि हम सभी आतंकवादियों को अपना दुश्मन क्यों बना लें? जो आतंकवादी पाकिस्तान के खिलाफ नहीं बल्कि भारत के खिलाफ कार्रवाइयां कर रहे हैं, उन्हें पाकिस्तान सरकार अपने खिलाफ क्यों करे? इसके बाद जब 11 जुलाई को रूस के उफा शहर में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के बीच मुलाकात के बाद जारी संयुक्त बयान में यह कहा गया कि पाकिस्तान मुंबई पर हुए आतंकवादी हमलों की साजिश रचने वाले प्रमुख व्यक्तियों में से एक जकीउर्राहमान लखवी की आवाज के नमूने भारत को मुहैया कराने पर राजी हो गया है, तब उसके अगले ही दिन सरताज अजीज ने बयान देकर कहा कि भारत की शर्तों पर पाकिस्तान उसके साथ बात नहीं कर सकता और जहां तक मुंबई हमलों के दोषियों को सजा देने की बात है, तो उसके लिए भारत को और सुबूत देने होंगे. पिछले छह साल से पाकिस्तान यही दुहराता आ रहा है.

भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों के बीच बातचीत सौहार्दपूर्ण माहौल में नहीं हो रही है. पंजाब के गुरदासपुर में 11 जुलाई को आतंकवादी हमला हुआ जिसके दौरान आतंकवादियों ने दीनानगर पुलिस थाने पर कब्जा कर लिया. भारत का कहना है कि उनसे बरामद हथियारों और जीपीएस से पता चलता है कि ये तीन आतंकवादी पाकिस्तान से आए थे. पाकिस्तान ने हस्बे मामूल इसका खंडन किया. जम्मू-कश्मीर में 5 अगस्त को दो आतंकवादियों ने हमला किया और दो नागरिकों को बंधक बना लिया. बाद में उनमें से एक आतंकवादी पकड़ा गया और दूसरा मार गिराया गया. पकड़े गए आतंकवादी का नाम मुहम्मद नावेद उर्फ उस्मान है. वह साफ तौर पर कुबूल रहा है कि वह पाकिस्तान का रहने वाला है और यहां ‘हिंदुओं को मारने' आया है. पाकिस्तान इसे भी अपना नागरिक मानने से इंकार कर रहा है.

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक के ठीक पहले इस प्रकार की आतंकवादी कार्रवाइयां होना अच्छा संकेत नहीं है. इनसे पाकिस्तान की नीति में निरंतरता का पता चलता है. आतंकवाद को राज्य के रणनीतिक लक्ष्य प्राप्त करने का औज़ार बनाना उसकी दीर्घकालिक और सुचिन्तित नीति रही है और उसमें बदलाव की कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सत्ता में आने के पहले पाकिस्तान के प्रति बेहद कड़ी नीति अपनाए जाने की वकालत करते रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी भी दशकों से गाहे-बगाहे ‘हॉट पर्स्यूट” की बात करती रही है जिसका अर्थ है कि भारत पर हमला होने की सूरत में उसे पाकिस्तान के क्षेत्र में घुसकर आतंकवादी प्रशिक्षण शिविरों को नष्ट करना चाहिए. जाहिर है कि जनता के बीच सत्तारूढ़ पार्टी और प्रधानमंत्री के बयानों ने बहुत बड़ी-बड़ी उम्मीदें पैदा कर दी हैं. उन्हें पूरा करना टेढ़ी खीर है. अजित डोवाल और सरताज अजीज के बीच वार्ता इसे सीधा कर पाएगी, इस पर विश्वास करना मुश्किल है.

ब्लॉग: कुलदीप कुमार