अच्छी या बुरी कॉफी
लाटे माकियाटो हो या फिर कैपचिनो. भारत में कॉफी की दीवानगी बढ़ती जा रही है. जितना उपभोग बढ़ रहा है उतनी इसकी खेती भी. किसी चीज की इतनी ज्यादा खेती होना क्या पर्यावरण के लिए ठीक है?
बुरी नहीं
कॉफी स्वास्थ्य के लिए खराब नहीं है. दिन में दो तीन कप तो अच्छे हैं. कॉपी के कारण शरीर के कई अंगों पर अच्छा असर होता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक लीवर सिरोसिस, अल्जाइमर और पार्किंसन्स का खतरा भी ये कम करती है.
दीवाने जर्मन
जर्मनी का सबसे पसंदीदा पेय बीयर नहीं बल्कि कॉफी है. हर जर्मन साल में औसतन 149 लीटर कॉफी पी जाता है, यानी हर दिन कम से कम तीन कप. दूसरे नंबर पर पानी आता है. जबकि बीयर पीने का सालाना औसत 100 लीटर है.
शरीर और दिमाग के लिए
कॉफी में कैफीन होता है. यह रासायनिक पदार्थ दिल की धड़कन बढ़ाता है. नसों को शरीर में तो चौड़ा कर देता है लेकिन दिमाग में खून ले जानी वाली नसों को संकरा. कैफीन आवेग, क्षमता, एकाग्रता बढ़ाता और जगाए रखता है. हालांकि कॉफी की लत भी पड़ सकती है. कॉफी पीना बंद करने पर सिर दर्द भी हो सकता है.
कॉफी की शुरुआत
पूर्वी अफ्रीकी देश इथोपिया से कॉफी के पौधे आते हैं. चार मीटर ऊंचे पौधों पर कॉफी उगती है. पकने के दौरान कॉफी के फल हरे से पीले होते हैं और फिर लाल. उनमें दो बीज होते हैं जिन्हें कॉफी का बीज कहा जाता है.
बढ़ती खेती
कॉफी के फलों को हाथ से तोड़ना पड़ता है और फिर इन्हें सुखाया जाता है. इसके लिए उन्हें कई हफ्तों धूप में रखा जाता है और नियमित रूप से इन्हें उल्टा पल्टा जाता है. या फिर इन्हें धोया जाता है और फिर फल का गूदा निकाला जाता है. आखिर में बीज बच जाता है.
तैयार बीज
सुखाने के बाद बीज को उसके खोल से निकालना जरूरी है. इसके बाद इन्हें सेंका जाता है और फिर पीसा जाता है. अलग अलग पौधा अलग अलग तरह के बीज और फ्लेवर देता है.
नंबर वन ब्राजील
कॉफी निर्यात में पहले नंबर पर ब्राजील आता है, दूसरे पर वियतनाम और कोलंबिया. कॉफी के पौधों के लिए संतुलित मौसम चाहिए जहां न पाला पड़े और गर्मी भी तेज न हो. भूमध्य रेखा के आसपास वाले देशों में कॉफी उगाई जाती है.
हैम्बर्ग में कॉफी
हर साल हैम्बर्ग में करीब आठ टन कॉफी के बीज तोड़े जाते हैं. इसका अधिकतर हिस्सा निर्यात कर दिया जाता है. हैम्बर्ग के बंदरगाह पर कच्ची कॉफी आती है और फिर यहां से स्कैंडेनेवियाई, जर्मन और पूर्वी यूरोप में भेजी जाती हैं.
जैव विविधता के लिए बुरा
पारंपरिक तौर पर कॉफी बड़े पेड़ों की छाया में उगाई जाती है. इससे पौधों की विविधता बनी रहती थी. मांग बढ़ने के साथ इन्हें ज्यादा उगाया जाने लगा और अब यह मोनोकल्चर में उगाई जाती है. इस कारण पक्षियों को जगह नहीं मिलती.
वैकल्पिक इको कॉफी
कई देशों में कॉफी उगाने के लिए जंगलों को काटा जाता है. रासायनिक खाद और हर्बिसाइड्स जमीन को नुकसान पहुंचाते हैं. इको कॉफी पर्यावरण को नुकसान नहीं पहुंचाने वाली है लेकिन दुनिया के बाजार में इसका हिस्सा काफी कम है.
जंगली कॉफी की सुरक्षा
कॉफी दुनिया भर में बनती है लेकिन इथोपिया की मूल जंगली कॉफी खत्म होने की कगार पर है. यह काफा इलाके में पैदा होती है और पेड़ों की कटाई के कारण नुकसान में है. इसकी खास सुरक्षा की जा रही है.
अजीब स्टाइल
दुनिया की सबसे महंगी कॉफी थाईलैंड की है- ब्लैक आयवरी कॉफी काला हाथी दांत. ये कॉफी के बीज हाथी के पेट में फर्मेंट होते हैं. जो बीज बचते हैं वो हाथी के गोबर के साथ बाहर आ जाते हैं क्योंकि हाथी ये बीज पचा नहीं सकते... क्या सच में टेस्टी!!