1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

अंगेला मैर्केल की उम्मीदवारी से आशाएं

२१ नवम्बर २०१६

अंगेला मैर्केल के फिर से चांसलर पद की उम्मीदवार बनने से कई नए अवसर खुलेंगे. डॉयचे वेले के काय-अलेक्जेंडर शोल्स कहते हैं कि देश में पॉपुलिज्म के चढ़ते ज्वार में केवल वही सही रास्ता दिखा सकती हैं.

https://p.dw.com/p/2T0k3
Deutschland Angela Merkel
तस्वीर: Getty Images/AFP/J. Macdougal

बीते 11 बरसों से जर्मन चांसलर का पद संभालने वाली अंगेला मैर्केल पिछले 16 सालों से अपनी सीडीयू पार्टी की प्रमुख भी हैं. इस दौरान उन्होंने जर्मनी की कर्ज समस्या का रुख मोड़ने, बेरोजगारों की संख्या को आधा करने, शोध पर खर्च को दोगुना करने जैसी तमाम उपलब्धियां अर्जित की हैं. यहां तक की उन्होंने अपनी पार्टी को भी काफी आधुनिक बनाया है.

विदेश नीति के मामले में जर्मनी का स्वर ऊंचा हुआ है क्योंकि तमाम मौकों पर दूसरे कई देशों ने चुप्पी साध ली थी. विश्व आर्थिक संकट की घड़ी हो, यूरोपीय कर्ज संकट हो या रूस द्वारा क्रीमिया को यूक्रेन से काटने की बात- जर्मन चांसलर ने इन सब मौकों पर सबल नेतृत्व का प्रदर्शन किया.

कुछ लोगों के लिए मैर्केल की "उपलब्धियां” कुछ ज्यादा ही हो गई हैं. उनकी पार्टी के पुराने कंजर्वेटिव नेता इस बात से नाराज हैं कि वे सोशल डेमोक्रैटिक सिद्धांतों की ओर कुछ ज्यादा ही बल देती हैं. जर्मनी की लगभग आधी आबादी को ऐसा भी लगता है कि लाखों प्रवासियों को देश में आने देकर चांसलर मैर्केल ने कुछ अतिउदारता का परिचय दिया है.

Scholz Kay-Alexander Kommentarbild App
काय-अलेक्जेंडर शॉल्स, डॉयचे वेले

मैर्केल के इस कदम से देश में गुस्सा पैदा हुआ और इसी शरणार्थी नीति की आलोचना की लहर पर दक्षिणपंथी पार्टी एएफडी मजबूत हुई. इसी दौरान ऐसी सोच वाले कई समूह दुनिया भर में सक्रिय और संगठित हुए. कई लोगों का मानना है कि मैर्केल ने अपनी नीतियों के कारण पैदा हुए खतरों से निपटने के लिए कुछ खास कदम नहीं उठाए.

भले ही पूरी दुनिया से इस समय मैर्केल की तारीफों के स्वर सुनाई दे रहे हैं, लेकिन जर्मनी के भीतर मैर्केल को लेकर आम राय बंटी हुई है. अगर वे अभी भी चांसलरी छोड़ दें तो ये काफी गरिमामय होता.

पीछे ना हटना

एक जर्मन कहावत है: "जो सूप तुमने खराब किया है, उसे तुम्हें ही पीना होगा” इसका आशय उन समस्याओं से निपटने से है जो खुद की पैदा की हुई हैं. मैर्केल के अगले चुनाव में भी जीतने की काफी संभावना है, जिसके बाद चार और साल वे अपनी तमाम नीतियों को आगे बढ़ा सकेंगी, खासकर यूरोप के शरणार्थी संकट के मामले में.

यूरोपीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर इतना काम कर चुकने के बाद मैर्केल के पास अब एक और मौका होगा आम जर्मन नागरिकों की चिंताओं को समझ कर उन पर विचार करने का. उनका फिर से चुना जाना एक बार फिर मौका देगा कि वे अमीर-गरीब और ग्रामीण-शहरी आबादी के बीच गहरी होती जा रही खाई को पाटने की दिशा में अच्छे समाधान पेश करें. सामाजिक असमानता और राजनैतिक ध्रुवीकरण के ऐसे चलन को धीमा किए या पलटे बिना देश में दक्षिणपंथी पॉपुलिज्म को रोकना मुश्किल होगा.

लोकलुभावनवाद को टक्कर

वर्तमान (और संभावित भावी) जर्मन चांसलर के पास ही इतनी सामर्थ्य, रसूख और अनुभव है कि वे पॉपुलिज्म को टक्कर दे सकें. वे ऐसी यथार्थवादी हैं जो समस्या का समाधान तलाशने में किसी खास विचारधारा से बंध कर नहीं रहतीं और तमाम मुद्दों को सामने से झेलने की शक्ति रखती हैं.

रविवार को अपने भाषण में चौथी बार चुनाव लड़ने की घोषणा करते हुए मैर्केल ने दोहराया कि जर्मनी को ध्रुवीकरण से लड़ने के लिए समाज में एकता बनाए रखने की कितनी जरूरत है. उन्होंने इस लड़ाई में हिस्सा लेने और सही विकल्प की ओर बढ़ने की इच्छा दिखाई. अगर मैर्केल वाकई ऐसा कर पाती हैं तो ना केवल वे अपनी पार्टी को एएफडी से मिल रही चुनौतियों से बचा पाएंगी बल्कि पूरे पश्चिमी समाज को दिखा सकेंगी कि पॉपुलिज्म के अलावा भी समस्याओं से निपटने का कोई रास्ता हो सकता है.

मिसाल बनना

एक और बात ये भी है कि एक महिला होने के नाते मैर्केल हाल ही में जर्मनी पहुंची उन हजारों रिफ्यूजी महिलाओं के लिए भी आदर्श होंगी, जिनके अपने देशों में उन्हें पारंपरिक रूप से पर्याप्त अधिकार नहीं दिए जाते थे. इन औरतों के लिए भी मैर्केल प्रेरणा का स्रोत होंगी और उन्हें देख कर शायद वे भी खुद को तमाम बंधनों और जकड़नों से आजाद करने की कोशिश करेंगी.

कई अध्ययन दिखा चुके हैं कि किसी नए समाज के साथ घुलने मिलने में महिलाओं की भूमिका बेहद अहम होती है. ऐसे में मैर्केल की प्रेरणा से भविष्य में पूरे जर्मन समाज को फायदा हो सकता है. ऐसी तमाम संभावनाओं और आशावादी अपेक्षाओं से भरा है जर्मन चांसलर मैर्केल के फिर से चुनाव में खड़े होने का फैसला.

काय-अलेक्जेंडर शॉल्स